पंजाब में एक ऐसा दिन दर्ज हुआ, जिसे लंबे समय तक याद रखा जाएगा। पहली बार पंजाब विधानसभा ने अपना विशेष सत्र चंडीगढ़ से बाहर, पवित्र नगरी श्री आनंदपुर साहिब में किया। यह सत्र हिन्द दी चादर श्री गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहादत को समर्पित था और पूरे राज्य में इस मौके पर धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल देखने को मिला।
आनंदपुर साहिब में सत्र क्यों खास है?
श्री आनंदपुर साहिब सिख इतिहास में बहुत बड़ा स्थान रखता है।
यहीं दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।
सिख धर्म से जुड़े कई महत्वपूर्ण फैसले और घटनाएं इसी धरती पर हुईं।
विधानसभा सत्र को यहां आयोजित करना सिर्फ एक सरकारी फैसला नहीं था, बल्कि पंजाब की विरासत, आस्था और धार्मिक सम्मान को सलाम करने जैसा कदम था।
सरकार का बड़ा फैसला – तीन पवित्र स्थानों को “पवित्र नगर” का दर्जा
सत्र के दौरान मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किया।
इसमें तीन जगहों को “पवित्र नगर (Holy City)” घोषित करने की मांग की गई:
- श्री आनंदपुर साहिब
- तलवंडी साबो (दामदमा साहिब)
- स्वर्ण मंदिर परिसर (हरमंदिर साहिब)
विधानसभा के सभी सदस्यों ने यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास कर दिया।
इससे पंजाब की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा को और मजबूती मिलेगी।
राज्यभर में धार्मिक व सामाजिक कार्यक्रम
गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस पर पंजाब में बड़े स्तर पर कार्यक्रम हुए।
कई जगहों पर भव्य नगर कीर्तन निकाले गए, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल हुए।
इसके अलावा:
- सेमिनार आयोजित हुए, जिनमें गुरुजी की शहादत और शिक्षा पर चर्चा हुई।
- रक्तदान शिविर लगाए गए, ताकि मानवता की सेवा का संदेश दिया जा सके।
- वृक्षारोपण अभियान चलाए गए, जिससे पर्यावरण संरक्षण का मैसेज लोगों तक पहुँचा।
गुरु तेग बहादुर जी की शहादत – मानवता की मिसाल
गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
उन्होंने कश्मीरी पंडितों को जबरन धर्म-परिवर्तन से बचाने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
उनकी शहादत आज भी धार्मिक स्वतंत्रता, सहनशीलता, और मानवता की अनोखी मिसाल है।
सरकार और समाज का यह संयुक्त प्रयास नई पीढ़ी को गुरुजी के बलिदान और जीवन दर्शन से जोड़ने की कोशिश है।
विधानसभा का ऐतिहासिक सत्र – लोकतंत्र और आध्यात्मिकता का संगम
इस आयोजन ने यह संदेश दिया कि पंजाब की लोकतांत्रिक परंपराएं और आध्यात्मिक विरासत एक-दूसरे के पूरक हैं।
विधानसभा का यह सत्र सिर्फ एक राजनीतिक गतिविधि नहीं था, बल्कि समाज को एकता, सद्भाव, और भाईचारा का मजबूत संदेश देने वाला कदम था।
इस पहल से पंजाब की पहचान और अधिक मजबूत हुई है।
यह फैसला आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बनेगा और इसे इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में याद किया जाएगा।