कहीं राम के लौटने की खुशी, तो कहीं महावीर का निर्वाण, गुरु हरगोबिंद की आज़ादी और बुद्ध की शांति से जुड़ा है ये पर्व
आज पूरा देश दीपों के त्योहार दीपावली (Diwali) की रौनक में डूबा है। हर घर जगमगा रहा है, रंगोली सजी है और खुशियों की मिठास हवा में घुली है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दीपावली सिर्फ हिंदू धर्म का ही नहीं, बल्कि जैन, सिख, बौद्ध समाज के लिए भी उतनी ही अहम है। हर धर्म में इस दिन को अपने-अपने ढंग से मनाया जाता है और हर जगह इसके पीछे एक अलग कहानी है।
आइए जानते हैं, अलग-अलग धर्मों में दीपावली का क्या मतलब है और कैसे मनाई जाती है —
हिंदू धर्म – भगवान राम की अयोध्या वापसी की खुशी

हिंदू परंपरा में दीपावली का सबसे बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीराम 14 साल का वनवास पूरा करके माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने उनके स्वागत में पूरे नगर में दीप जलाए थे। तभी से दीपों का ये उत्सव मनाया जाता है।

कहीं इसे लक्ष्मी पूजा के रूप में, तो कहीं कृष्ण द्वारा नरकासुर राक्षस के वध की याद में मनाया जाता है। दीप जलाने का मतलब है — अंधकार पर प्रकाश की जीत, बुराई पर अच्छाई की जीत।
इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, रंगोली बनाते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं और शाम को लक्ष्मी-गणेश पूजा करते हैं। व्यापारी वर्ग इस दिन नए बही-खाते भी शुरू करता है, जिसे शुभ माना जाता है।
जैन धर्म – भगवान महावीर का मोक्ष दिवस
जैन समाज में दीपावली का दिन बहुत खास होता है, क्योंकि इसी दिन 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को मोक्ष (निर्वाण) प्राप्त हुआ था।

इस दिन को ज्ञान और आत्मा की रोशनी का दिन कहा जाता है। मंदिरों और घरों में दीपक जलाए जाते हैं, धार्मिक ग्रंथ पढ़े जाते हैं और भगवान महावीर की विशेष पूजा होती है।
कोटा में दादाबाड़ी नसियां जी मंदिर के अध्यक्ष जम्बुकुमार जैन बताते हैं कि —
“इस दिन भगवान महावीर को निर्वाण का लड्डू चढ़ाया जाता है। इस साल 108 किलो का लड्डू अर्पित किया जाएगा, जिसमें सबसे बड़ा लड्डू 24 किलो का होगा। लड्डू का गोल आकार आत्मा की तरह होता है — जिसका न आरंभ है, न अंत।”
जैन धर्म में लक्ष्मी का अर्थ है निर्वाण (मोक्ष) और सरस्वती का अर्थ है केवल ज्ञान। इसलिए इस दिन सुबह मंदिरों में विशेष पूजा होती है और घरों में दीप जलाए जाते हैं।
सिख धर्म – बंदी छोड़ दिवस के रूप में दीपावली
सिख समाज दीपावली को “बंदी छोड़ दिवस” (Bandi Chhor Divas) के रूप में मनाता है। इतिहास के अनुसार, मुगल बादशाह जहांगीर ने गुरु हरगोबिंद सिंह जी को ग्वालियर के किले में कैद कर लिया था। गुरु जी ने 52 हिंदू राजाओं को भी साथ रिहा कराया। जब वे सब जेल से बाहर आए, तो कार्तिक अमावस्या की रात थी।

गुरुद्वारों में दीप जलाए गए, खुशियां मनाई गईं और तभी से इस दिन को बंदी छोड़ दिवस कहा जाने लगा।
इस दिन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) समेत देशभर के गुरुद्वारों में लाइटिंग, दीये और आतिशबाजी होती है। अखंड पाठ और लंगर सेवा का आयोजन होता है। सिख समाज इस दिन को आज़ादी, सेवा और एकता के प्रतीक के रूप में मनाता है।
बौद्ध धर्म – गौतम बुद्ध और सम्राट अशोक से जुड़ा दीपदान उत्सव
बौद्ध समाज में दीपावली को दीपदान उत्सव (Festival of Lights) कहा जाता है। ये दिन दो ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा है —
पहली, जब गौतम बुद्ध अपने पिता के बुलावे पर कपिलवस्तु लौटे थे। उस समय पूरे नगर को दीपों से सजाया गया था, इसलिए इस दिन को यादगार बनाया जाता है।

दूसरी घटना सम्राट अशोक से जुड़ी है। कलिंग युद्ध के बाद अशोक बहुत दुखी हुए और बौद्ध धर्म अपनाया। कहा जाता है कि उन्होंने दीपावली के दिन ही बौद्ध भिक्षु का दीक्षा ग्रहण किया था। जनता ने उनके मगध आगमन पर दीप जलाकर स्वागत किया था।
तब से इस दिन को धम्म ज्योति के रूप में मनाया जाता है। बौद्ध विहारों में साधना, ध्यान और दीपदान किया जाता है।
अन्य समुदायों में भी दीपावली की अपनी परंपराएँ
सिंधी समाज
सिंधी समाज में दीपावली पर बही-खातों की पूजा की जाती है। रात को मंदिर में हठरी पूजन (मिट्टी से बनी संरचना) किया जाता है। घरों में लक्ष्मी-गणेश और भगवान झूलेलाल की पूजा होती है। अगले दिन “दूज” पर मंदिर में भंडारा और समाजिक आयोजन होते हैं।

बंगाली समाज
बंगाली परिवार दीपावली की रात काली पूजा (Kali Puja) करते हैं। रात 12 बजे मंदिरों में मां काली की आरती होती है। महिलाएं व्रत रखती हैं और 108 दीप जलाती हैं। सुबह 4 बजे खिचड़ी प्रसाद से व्रत खोला जाता है।

मलयाली समाज
मलयाली लोग दीपावली को अपने इष्टदेव भगवान अय्यप्पा की पूजा के रूप में मनाते हैं। घरों में रंगोली और दीपमालाएं सजती हैं, मंदिरों में दीपदान होता है और पूरे वातावरण में शांति और भक्ति का माहौल होता है।
एक त्योहार, कई अर्थ – सबमें एक ही संदेश: अंधकार पर प्रकाश की जीत
दीपावली सिर्फ एक धर्म या एक कहानी तक सीमित नहीं है। इसका असली संदेश है —
“अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना, अज्ञान से ज्ञान की ओर, और दुख से सुख की ओर।”
चाहे वह भगवान राम की वापसी हो, भगवान महावीर का निर्वाण, गुरु हरगोबिंद की मुक्ति या सम्राट अशोक का धर्म परिवर्तन — हर कहानी में जीत, प्रकाश और शांति का संदेश छिपा है। दीपावली इसलिए खास है क्योंकि ये हमें याद दिलाती है कि —
हर अंधेरी रात के बाद सुबह ज़रूर होती है, बस दिल में एक दीप जलाए रखना है।