नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने गंभीर रूप से बीमार मरीजों को आईसीयू में भर्ती करने के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसके मुताबिक, परिवार वालों की सहमति के बिना अस्पताल मरीज को आईसीयू में भर्ती नहीं कर सकेगा. इसके अलावा अगर किसी मरीज का इलाज नहीं हो रहा है, सेहत में सुधार नहीं हो रहा है तो अस्पताल उसे जानबूझकर आईसीयू में नहीं रख सकेगा. स्वास्थ्य मंत्रालय ने 24 डॉक्टरों की टीम की सिफारिश के आधार पर यह गाइडलाइन जारी की है. इन विशेषज्ञों के अनुसार, महामारी या प्राकृतिक आपदा की स्थिति में, जहां संसाधन सीमित हैं, जरूरतमंद मरीज को प्राथमिकता दी गई है।
गाइडलाइंस के मुताबिक, किसी मरीज को आईसीयू में तभी भर्ती किया जा सकता है, जब उसे ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत हो, सांस लेने में दिक्कत हो रही हो, दिल का दौरा पड़ा हो या गंभीर बीमारी होने की आशंका हो। इसके अलावा ऐसे मरीज जिन्हें बेहोशी की हालत में श्वसन सहायता की आवश्यकता होती है, गंभीर बीमारी की स्थिति में गहन निगरानी की आवश्यकता होती है, जब सर्जरी के बाद स्वास्थ्य बिगड़ने का डर हो, तो उन्हें आईसीयू में भर्ती किया जा सकता है।
इसके अलावा गाइडलाइन में यह भी कहा गया है कि अस्पताल को आईसीयू बिस्तर में रक्तचाप, पल्स रेट, सांस लेने का पैटर्न, हृदय गति, ऑक्सीजन संतृप्ति, मूत्र उत्पादन सहित अन्य मापदंडों की जांच करनी चाहिए। इसके अलावा मरीज की स्थिति सामान्य होने या बेसलाइन स्थिति में आने के बाद अस्पताल को उन्हें आईसीयू से छुट्टी दे देनी चाहिए।
सरकार ने जारी की नई गाइडलाइंस
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत में करीब 1 लाख आईसीयू बेड हैं, जिनमें से ज्यादातर प्राइवेट अस्पतालों में हैं। इस बारे में वकील और जन स्वास्थ्य कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने कहा कि जो गरीब लोग निजी अस्पतालों में इलाज नहीं करा पाते, उन्हें आईसीयू बेड आसानी से नहीं मिल पाता. मरीजों को उनकी स्थिति के आधार पर आईसीयू देखभाल के लिए प्राथमिकता देने का विचार प्राकृतिक आपदा की स्थिति के लिए अच्छा हो सकता है।