प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एसिड अटैक से संबंधित एक याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि चिकित्सा अनुदान एक मौलिक अधिकार है जो भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है। एसिड अटैक पीड़ितों के लिए राज्य द्वारा मुफ्त चिकित्सा सहायता प्रदान की गई है।
23 मई 2014 के शासनादेश में प्रस्तावित है कि पीड़ितों के लिए किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज, लखनऊ में प्लास्टिक और पुनर्निर्माण सर्जरी विभाग में 25 बिस्तरों वाले विशेष वार्ड का प्रबंध किया गया है। पीड़ित को मुआवजा विधिवत गठित मेडिकल बोर्ड द्वारा चोटों के आकलन के बाद दिया जाता है। मौजूदा मामले के तथ्यों पर विचार करने के साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश का हवाला देते हुए आरोपियों को 5 लाख 26 हजार रुपए की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय और न्यायमूर्ति सुरेन्द्र सिंह प्रथम की खंडपीठ ने अलीगढ़ निवासी पीड़िता और उसके बेटे द्वारा दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। मांगी गई राशि पीड़िता द्वारा निजी अस्पताल में एसिड अटैक से जलने के कारण चिकित्सा उपचार पर खर्च की गई है।
बता दें कि याचियों को देखभाल और पुनर्वास के लिए नियमावली 2015 के तहत अधिकतम पांच लाख की मुआवजा राशि पहले ही प्रदान की जा चुकी है। इसके बाद याचियों ने पुनः मुआवजे के भुगतान का दावा किया है जो उन्होंने मथुरा और जयपुर में इलाज के दौरान खर्च किए। हालांकि विपक्षियों/आरोपियों ने उपरोक्त राशि के भुगतान पर इस आधार पर आपत्ति जताई कि याची ने सरकारी अस्पताल के एक चिकित्सा अधिकारी द्वारा इलाज के लिए निजी अस्पताल में रेफर करने के संबंध में यूपी नियमावली 2015 के नियम 12-ख के प्रावधानों का पालन नहीं किया है। इसके साथ ही एसिड हमले में 10% से कम चोट लगने के कारण पीड़िता का बेटा उक्त नियमावली के तहत मुआवजे का हकदार नहीं है।